शरत्चंद्र का सम्पूर्ण जीवन औपन्यासिक प्रभाव से संपृक्त था। -रामशोभित प्र. सिंह
पटना,19 दिसम्बर, 2015।
शरत् चंद्र ने अपनी रचना से सम्पूर्ण भारतीय समाज एवं रिश्तों की बुनियाद को गहरे प्रभावित किया है। हिन्दी साहित्य के मूर्धन्य रचनाकार विष्णु प्रभाकर ने आवारा मसीहा में शरत् के जीवन की सच्चाईयों और अपनी कल्पनाशीालता के योग से एक कालजयी कृति का निर्माण किया। प्रस्तुत पुस्तक ‘आवारा मसीहा की औपन्यासिकता’ में कलानाथ मिश्र ने शरत् की जीवनी और उपन्यास कला के आधार पर आलोचनात्मक दृष्टि से उसकी पड़ताल की है। ये कहना है जााने माने साहित्यकार एवं प्रसिद्ध पुस्तकालय विज्ञानी डाॅ0 रामशोभित प्रसाद सिंह का। वे आज चर्चित कथाकार, समालोचक डा. कलानाथ मिश्र की पुस्तक ‘आवारा मसीहा की औपन्यासिकता’ के लोकार्पण के अवसर पर अपने विचार रख रहे थे। साहित्यिक पत्रिका ‘नई धरा’ द्वारा आयोजित समारोह को संबोधित करते हुए नई धारा के संपादक एवं कवि समालोचक डाॅ. शिव नारायण ने कहा कि एक ओर जहाँ कलानाथ मिश्र की कहानियों में वर्तमान जीवन के सामाजिक रिश्तों का यथार्थ दर्शित है वही दूसरी ओर उनका आलोचना कर्म बौद्धिक विवेचन और बारीक विश्लेषण पर आधारित है।
पुस्तक का लोकार्पण एक भावपूर्ण आयोजन के मघ्य डा. मिश्र की पत्नी एवं कवयित्री राजकुमारी मिश्र ने की। समारोह की अध्यक्षता डा. रामशोभित प्रसाद सिंह ने की तथा मुख्य अतिथि ए. एन. काॅलेज के प्रधानाचार्य प्रोफेसर डा. ललन सिंह थे। ए. एन काॅलेज के प्रधानाचार्य ने कहा कि कलानाथ जी एक कुशल संपादक भी हैं शोध प्रत्रिका के संपादन के साथ-साथ काॅलेज पत्रिका के भी कुशल संपादक हैं। अतः इनकी आलोचना दृष्टि सूक्ष्म है। उन्होंने कहा शरत चंद्र के उपन्यास में महिला जीवन का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण हुआ है। अतः उनका जीवन तो उपन्यासिक है ही।
आरम्भ में स्वागत करते हुए पुस्तक के रचनाकार कलानाथ मिश्र ने कहा कि शरत्चंद के उपन्यास मन को छूती हैं और जीवन के यथार्थ से परिचित कराती है। जब आवारा मसीहा पढ़ने का अवसर मिला तो जीवनी और उपन्यास के बीच की बारीकियांे पर घ्यान गया। जीवनी और उपन्यास रचना के दो अलग अलग शिल्प हैं किन्तु महान रचनाकारांे के जीवन के संबंध में साक्ष्य की कमी के कारण रचनाकार अभीष्ट प्रभाव क सृजन के लिए कल्पना का सहारा लेता है और इस प्रकार रचना औपन्यासिंक प्रभाव से संपृक्त हो जाता है।
कवि समालोचक एवं नई धरा के संपादक शिवनारायण ने कहा कि कलानाथ मिश्र की कथा संवेदना माानवोत्थान
इस अवसर पर हिन्दी की शोधार्थी और डाॅनबास्को स्कूल की हिन्दी शिक्षिका करुणा कमल ने राजकुमारी मिश्र की कविता ‘ कौन हो तुम प्रिय मेरे’ का पाठ किया। आयोजन में ए. एन काॅलेज के राजनीति विभाग के अध्यक्ष डा. बिमल कुमार सिंह, समाज शास्त्र विभाग के अघ्यक्ष डा. अजय कुमार, हिन्दी विभाग के वरिष्ठ प्राध्यापक डा. बद्री नारायण सिंह, संजय सिंह ने अपने विचार रखे।
आयोजन के अंत में सुप्रतिष्ठ कवि एवं नयी धारा के संपादक डा. शिवनारायण, साहित्यकार निविड़ शिवपुत्र, सुप्रतिष्ठ कवयित्री भावना शोखर, रिषिकेश पाठक, कथालेखिका निरूपमा राय, इति माधवी, कलानाथ मिश्र, अमित मिश्र आदि जाने साहित्यकारों ने अपनी कविता पाठ कर आयोजन को यादगार बनाया। उपस्थित रचनाकारों लेखकों ने ‘आवारा मसीहा की औपन्यासिकता’ की प्रशंसा करते हुए कलानाथ मिश्र के आलोचना कर्म की प्रशंसा की। इस अवसर पर डा. मिश्र के परिवार के सदस्य भी उपस्थित थे।
कार्यक्रम के आरंभ में स्नातकोत्तर हिन्दी विभाग के छात्र अमित मिश्र, शिवनन्दन, सीमा कुमारी आदि ने पुष्पगुच्छ देकर मान्य अतिथियों का स्वागत किया।